moral of eklavya story
गरीब लकड़हारा की कहानी एक गांव में एक लकड़हारा रहता था वह लकड़हारा बहुत ही मेहनती था वह रोज लकड़ियां काटता और उन्हें बाजार में ले जा कर
भेजता उससे थोड़े बहुत पैसे मिल जाते हैं जिससे वह खाने-पीने की चीजें खरीद लाता उसमें से कुछ पैसे बचाकर अपने गोलक में रखता था इसी तरह दिन पर
दिन दिन गुजरते गया और एक दिन वह समय आ गया जब लकड़हारे को कोई बिजनेस करने का दिमाग में आईडी आया और उसने सोचा क्यों ना मैं मुर्गी फार्म
खोलना परंतु किसान के पास अभी भी ज्यादा पैसे नहीं थे इसीलिए किसान सोचा कि आज मैं जितनी भी लकड़ी या काट लूंगा और उसे भेजूंगा उसमें से एक भी पैसा
नहीं छू लूंगा उसे मुर्गिया ढेर सारी खरीद के लाऊंगा और उससे मैं एक मुर्गी फार्म बनाऊंगा और यह बात ठान कर किसान अगले दिन सुबह उठा और लकड़ियां काट
कर ले जाकर बेच दिया और उन पैसों से मुर्गी खरीद कर लाया उसमें से एक मुर्गी थी वह सोने के अंडे देने वाली मुर्गी थी इस बात को जब लकड़हारे को पता चली
तो लकड़हारा रोज एक सोने के अंडा देती थी वह धीरे-धीरे लकड़हारा अमीर होता गया अब वह भी खेलने लगा था और नशे भी करने लगा था इसी तरह देखते देखते
आप को बहुत बड़ा अय्याश बन गया सोचा कि क्यों ना हम इस मुर्गी का पेट काटकर सारे सोने के अंडे निकालने और ऐसा जब से किया मुर्गी भी मर गई और उसे सोने
के अंडे भी नहीं मिले इसलिए कहते हैं ज्यादा लालच करना हमारे लिए ठीक नहीं होता है कैसी लगी दोस्तों हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा आप सभी को अपना कीमती समय देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद