कहानी का शीर्षक: “ईमानदारी का फल”
एक छोटे से गांव में मोहन नाम का एक गरीब किसान रहता था। वह बहुत मेहनती और ईमानदार व्यक्ति था। मोहन के पास थोड़ी सी जमीन थी, जिसमें वह सब्जियाँ उगाकर अपनी आजीविका चलाता था। मोहन का एक ही सपना था कि वह अपनी बेटी राधा की शादी धूमधाम से कर सके।
एक दिन मोहन खेत में काम कर रहा था। उसे अचानक जमीन में कुछ चमकता हुआ दिखाई दिया। जब उसने ध्यान से देखा तो पाया कि वह एक सोने की थैली थी। मोहन ने थैली को उठाया और देखा कि उसमें बहुत सारे सोने के सिक्के थे। उसकी आंखें चमक उठीं। वह सोचने लगा कि इस सोने से वह अपनी बेटी की शादी अच्छे से कर सकेगा और बाकी पैसे से अपना घर भी बना सकेगा।
लेकिन मोहन का दिल साफ था। उसने सोचा कि यह सोना उसका नहीं है और इसे उसके असली मालिक को लौटा देना चाहिए। उसने गांव के मुखिया के पास जाकर सारी बात बताई और सोने की थैली उन्हें सौंप दी। मुखिया ने मोहन की ईमानदारी की प्रशंसा की और उसे इनाम देने का वादा किया।
कुछ दिनों बाद, गांव के मुखिया ने गांव में एक सभा बुलाई। उस सभा में मुखिया ने मोहन की ईमानदारी की कहानी सबको सुनाई और कहा, “हम सभी को मोहन से सीख लेनी चाहिए कि ईमानदारी से बड़ा कोई गुण नहीं होता।” मुखिया ने मोहन को इनाम के रूप में एक बड़ा खेत और कुछ पैसे दिए, ताकि वह अपनी बेटी की शादी कर सके और अच्छे से अपना जीवन यापन कर सके।
मोहन की ईमानदारी का फल उसे मिल चुका था। वह खुशी-खुशी अपने घर लौट आया और अपनी बेटी की शादी धूमधाम से की। गांव के सभी लोग मोहन की प्रशंसा करने लगे और उसकी ईमानदारी की मिसाल दी जाने लगी।
कहानी से सीख:
ईमानदारी का फल हमेशा मीठा होता है। चाहे स्थिति कैसी भी हो, हमें हमेशा सच्चाई और ईमानदारी का रास्ता चुनना चाहिए, क्योंकि यह हमें सच्ची खुशी और सम्मान दिलाता है।